मोरल स्टोरीज इन हिंदी (Moral Stories in Hindi) में आपका स्वागत है। दोस्तों, आज जो कहानी सुनाने जा रहा हूं उसका नाम है Princess and the Frog Story in Hindi | राजकुमारी और मेंढक। यह एक Pariyon Ki Kahani का कहानी है….आशा करता हूं कि आपको बेहद पसंद आयेगा। तो चलिए शुरू करते है आजका कहानी राजकुमारी और मेंढक – Pariyon Ki Kahani ।
Princess and the Frog Story in Hindi | राजकुमारी और मेंढक – Pariyon Ki Kahani
एक जमाने में बोहोत ही बड़ा साम्राज्य था। वहा शूर और प्रमाणिक राजा शासन कर्ता था। उसकी एक सुंदर सी बेटी थी, राजकुमारी गेंद से खेलने की बोहोत ही शौकीन थी।
इसलिये राजा ने उसके जन्मदिन पर उसी सोने का गेंद उपहार स्वरूप दिया। उसे वो गेंद बोहोत ही पसंद था, इस्लिये याद महल के बहार भी जाना हो तो हमेश उस गेंद को अपने पास ही रखा कार्ति थी।
एक गरमी में शाम के समय राजकुमारी घुमने के लिए उपवन में गई। उसे सोने के गेंद को स्वयं के हाथ में ही पकाड़ा हुआ था।
वो वो गेंद जितना ऊपर हवा में फेक सकाती थी। उठना फेकती थी, और पृथ्वी पर गिराने तक थारती थी।
किंतु उसे वो गेंद बोहोत ही ऊपर फेक दिया। इस्लिये राजकुमारी को वो गेंद कहा गया, ये दिखाया वह नहीं दिया। उसे नासादिक के तालाब में सिर्फ पानी के चिड़काव की बड़ी आवाज सुनी।
अरे नहीं मुझे विश्वास ही नहीं होता की मेरा सोने का गेंद खो गया।
राजकुमारी निराशा के साथ रोह पड़ी। में मेरे पिताजी को कैसे बताता की उन्होन जो अनमोल उपहार दिया था, वो मुझसे खो गया। ऐसा कहे कर राजकुमारी बोहोत ही रोह पड़ी।
इस्से वापस पाने के लिए में कोई भी वास्तु दे शक्ति हू।
अचानक एक मेंडक बहार चलंग लगायी और वो तालाब के एक पति पर बैठा गया। तुम क्यूं रो रही हो राजकुमारी?
उस राजकुमारी ने वो स्वर सुन लिया। उसे यहां वाहन देखा किंतु उससे कोई भी दिखी नहीं दिया।
में तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूं क्या? राजकुमारी उसे वो कारक स्वर फिर से सुन लिया, उसके बाद उसे देखा की तालाब के किनारे पर एक मेंधक बैठा हुआ है।
राजकुमारी अगर में गेंद को तालाब से निकल के दुतोह तुम्हारे अच्छा लगेगा? मेंधक ने बड़े सबायत के साथ पुचा। हां हां बिलकुल ये बोहोत ही अच्छा होगा!
राजकुमारी खुशी से कुधाने लगी। में तुम्हारे धेर सारे ही दुगी मोती दुगी, तुम जो कहोगे वो करुगी लेकिन उस मेंधक ने इनकार कर दिया।
नहीं नहीं मुझे तुम्हारे हीरे और मोती नहीं चाय। मुझे तुम्हारा कोई खज़ाना भी नहीं छै। उस्का मुझे कोई फ़यदा नहीं है, मैं तुम से चाहता हूं की तुम मुझसे प्यार करो। मुझे अपने साथ में रखो, अपनी थाली से ही खाना खिलाओ, और मुझे अपने बिस्तर में सुलाओ।
अगर तुम मंजूर है तो फिर में तुम्हारी गेंद तालाब से वापस लाओगा। ये कैसा भयावह विचार है! एक मेंधक मनुष्य जैसा जीवन कैसा जी सक्ता है?
राजकुमारी चिंता में पढ़ गई! ऐसा अशलील मेंधक मेरा गेंद कैसे धुंध सखता है।
इस्का मुझे आशााचार्य, और याद उसे ऐसा किया भी तो मुझसे मिलने के लिए मेरे महल तक आना मिलेगा, जो उसके लिए बोहत दूर है। राजकुमारी ने कहा ठीक है। में वचन देता हूं जो कुछ तुमने कहा वो मुझे मंजूर है।
सिर्फ मुझे मेरी गेंद वापस करो में तुम्हारी इच्छा पूरी करुगी। राजकुमारी ने निवेदन किया। मेंधक ने तालाब में छलंग लगायी और पानी चिदक गया।
राजकुमारी बोहोत ही बसबरे से उस तालाब की तरफ देख रही थी! जल्दी ही मेंधक ने अपना सर उपर उठा लिया। मेरी राजकुमारी ये राही तुम्हारी गेंद! उसे ऐसा कहा और तालाब से बहार आते ही उसे सोने की गेंद उसके तारफ फेक दी।
उसने उसे पसंद की चीज ले ली और खुशी से महल की तरफ दौड़ाने लगी। मेंधक उसे पुकार कर उसी दिए वचन के बारे में याद दिलाने लगा।
लेकिन वो भूल चुकी थी। रुख जाओ राजकुमारी रुख जाओ क्या तुम भूल चुकी हो अपना वचन। मुझे अपने साथ लेकर चलो। किंतु वो पीछे मुड़ी ही नहीं।
अगले ही दिन जब राजकुमारी परिवार के साथ खाना खाने के लिए बैठी थी, उस वक्त किसी ने धीरे से दरवाजा खट खता! राजकुमारी दरवाजा के पास आई और तालाब के मेंधक को देख कर वो आश्रयचकित हो गई!
क्यूं की उसे स्वयं महल तक पोहोचने में जीत हासिल की थी ना। राजकुमारी ने छठ से दरवाजा बंद कर दिया और फिर से टेबल पर जा कर बैठ गई।
क्या हुआ तुम इतनी उदासी क्यों हो? मेरी बच्ची उसके पिता ने कहा लेकिन पिताजी राजकुमारी ने कहा, उससे समाज नहीं आ रहा था कि तालाब के पास जो कुछ हुआ कैसे समझौता।
मेरे जनमदिन पर आपने दिए हुए गेंद के साथ में खेल रही थी, मुझसे वह तालाब में गिर गया वह पति पर एक मेंधक बैठा था और उस मेंधक ने उससे तालाब से निकलने में मेरी मदद की थी। बड़े में मैंने उससे ऐसा वचन दिया था की में उसके साथ यहा रहूंगी।
राजा ने कुछ धर विचार किया और फिर कहातुम राजकुमारी हो और राजकुमारी जूथा आशावासन नहीं दे शक्ति। तुम्हारे तुम्हारा वचन पुरा कर्ण होगा!
राजकुमारी दरवाजा खोलने के लिए गई और मेंधक ने चलंग लगायी और उसके कर्कश स्वर में कहा, सुन्नो मुझे खाने की नीस तक ले चलो ताकी में कुछ खा सखू।
राजकुमारी ने उसके पिताजी के तार देखा और अनिचाहा से ही उसे मेंडक को उथया, और टेबल की तरफ लेकर गई, और उससे टेबल पर बैठा दिया। उसे घर से अपना हाथ साफ किया। उसके सोने की थाली में मेंधक ने खाना शुरू किया और टैप टैप टैप आवाज शुरू कर दी।
खाना खाने के बाद मेंधक ने फिर से कहा अब में बोहोत ठक गया हूं। मुझे शयनकक्ष ले चलो और अपने बिस्तर में मुझे लातेओ। में कुछ धेर आराम कर्ण चाहुंगा।
राजकुमारी स्वयं की घर करना लागी। मुझे ऐसे कितने दिन जीना होगा इस गंदी चीज से मुझे कब छुटकारा मिलेगा। राजकुमारी उससे अपने कामरे की तारफ लेकर गई और उसे उसी के सामने रख दिया।
दिए हुए वचन के अनुसर मेंधक राजकुमारी के आगे सो गया, और सुभे होते ही उसे चाहलंग लगायी और महल से बहार निकल गया। चलो जान छुट्टी उठते ही राजकुमारी ने राहत ही सास ली, और देखा तो मेंधक चला गया था।
मैंने उसकी इच्छा पूरी की है, अब वो मुझे नहीं सतेगा। किंटू वो गलत थी। क्यूं की शामको मेंधक फिर से आया। जिस समय उसने धीरे से दरवाजा खत मारने की आवाज सुन्नी, उस समय वो फेले से वह बिस्तर पर थी।
दसरे दिन सुबे जब राजकुमारी जगी तोह उसे देखा मेंधक फिर से आया था किंटू शाम होगा और फिर से मेंधक ने तीसा भर दरवाजा खत खता।
हर दिन मेंधक के साथ सोने से राजकुमारिन को घर आएगी और वो उससे छुटकारा पाने का विचार करने लगी।
उसके मन में विचार शूरू थे, उसी वक्त वहा सोगायी। जब वह सुभा उठी उस वक्त मेंधक चला गया था, और एक भूरी आंखों वाला राजकुमार उससे ताक रहा था।
वो आशाचार्यचकित होगा किंतु एक वह रात में ये सब ठीक कैसे होगा! ये उससे समझ नहीं आ रहा था।
राजकुमारी उसके शापोन की संपूर्ण दर्दक कहानी उससे बता दी, और उसे आगे कहा, में राजकुमार था और तुम्हारी तारफ महल में रहता था।
लेकिन एक दिन एक धूल मंतरी ने मुझे शार्प दिया। उसी वजह से मुझे ऐसे राजकुमारी को धुंधना था जिसके साथ में तीन दिन रहे सखू।
शार्प मुक्ति के लिए अब में बहुत खुश हूं की तुम वही राजकुमारी हो जिसे मुझे तख्तीफ से बहार निकला। अपने जीवन में अधभूत सुंदर राजकुमार मिलने पर राजकुमारी बहुत खुश थी!
जल्दी दोनो ने शादी कर ली और राजकुमारी के पिताजी के महल में दो खुशी से रहने लगे।
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